इतिहास

हरित क्रांति के परिणामस्वरूप स्वतंत्र भारत ने अपने खाद्यान्न उत्पादन में चार गुना वृद्धि प्राप्त जिससे इसकी बढ़ती हुई आबादी के बावजूद आत्मनिर्भरता आई और इसने विश्‍व में खाद्यान्न के दूसरे सबसे बडे़ उत्पादक की स्थिति हासिल की। अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद भारत के पास अन्य देशों को निर्यात के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्‍न है।

भारत सरकार के खाद्य विभाग ने हापुड (उत्तर प्रदेश) में 8 दिसंबर 1958 को अनाज भंडारण अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। खाद्यान्‍न भंडारण और परिरक्षण के क्षेत्र में अनुप्रयुक्‍त अनुसंधान और सर्वोच्च स्तर की प्रशिक्षण के लिए सुविधाएं विकसित करने के लिए गोदामों, साईलोज और फार्म-हाऊस में खाद्यान्नों की हैडलिंग और रखरखाव में लगे हुए कर्मियों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से। डॉ एस वी पिंगले, कीटविज्ञानी डॉ लल्लन राय, कीटविज्ञानी, श्री जे एन सरिद,  श्री जे पी गुप्ता, श्री आई पी कपूर और श्री एम दास गुप्ता  आदि के प्रयासों ने इस संस्थान को 1963 के दौरान भवन और बुनियादी ढांचे से सुसज्जित करने का प्रयास किया।

यह संस्थान देश में अपनी तरह का एकमात्र संस्थान जो यह खाद्यान्नों की हैंडलिंग करने वाली विभिन्न एजेंसियों में कार्यरत व्यक्तियों को खाद्यान्‍न की हैडलिंग और संरक्षण की आधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षण देने के लिए समर्पित है। इसके अलावा संस्थान का प्रयास भारतीय परिस्थितियों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त अनाज के वर्गाकरण, परिरक्षण और रखरखाव की नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकें विकसित करना और लोकप्रिय बनाना भी है और इस प्रकार देश में भंडारण के दौरान होने वाले खाद्यान्‍नों के नुकसान को कम करना है।

इसके बाद में वर्ष 1968 में यूएनडीपी से वित्तीय सहायता के साथ लुधियाना और बापटला (बाद में हैदराबाद में स्थानांतरित) के दो फील्ड स्टेशनों के साथ केंद्र का विस्तार किया गया और इसे भारतीय अनाज भंडारण संस्थान (आईजीएसआई) बनाया गया। वर्ष 1996 में आईजीएसआई का नाम भारतीय अनाज संचयन प्रबंधन एंव अनुसंधान संस्थान (आईजीएमआरआई) कर दिया गया। हापुड़ (उत्तर प्रदेश) में स्थित आईजीएमआरआई, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के भंडारण और अनुसंधान अनुभाग के पर्यवेक्षण और प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत कार्य करता है। इस संस्थान से जुड़े दो फ़ील्ड स्टेशन लुधियाना (पंजाब) और हैदराबाद (तेलंगाना) में स्थित हैं। इन फील्ड स्टेशनों को मुख्य रूप से देश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में गेहूं, चावल, बाजरा, दालों और तिलहनों के रखरखाव और भंडारण की समस्याओं पर गहन अध्ययन करने के लिए स्थापित किया गया था, जो मुख्य रूप से इन वस्तुओं के अनुकूल हैं।