अनाज भंडारण

अनाज भंडारण:

अवैज्ञानिक भंडारण, कीट, चूहे, सूक्ष्‍म जीवाणु आदि के कारण कुल उत्पादित खाद्यान्‍नों के लगभग 10 प्रतिशत की फसल कटाई उपरान्‍त हानि होती है। भारत में वार्षिक भंडारण हानि 7000 करोड़ रूपए कीमत के लगभग 14 मिलियन टन खाद्यान्‍न हैं जिसमें अकेले कीटों से हानि लगभग 1300 करोड़ रूपए है। भंडारण कीट द्वारा प्रमुख हानि न केवल उनके द्वारा अनाज को खाने से होती है बल्‍कि संदूषण से भी होती है। जिनसे कीटों लगभग 600 प्रजातियां जुड़ी हैं। भंडारित उत्‍पादों के कीटों की लगभग 100 प्रजातियां आर्थिक हानि पहुँचाती हैं। विश्‍व बैंक की रिपोर्ट (1999) के अनुसार भारत में फसलोत्तर हानि प्रत्‍येक वर्ष 12 से 16 मिलियन टन खाद्यान्‍न है जो भारत के एक तिहाई गरीबों का पेट भर सकती है। न फसलोत्तर हानियों में से भंडारण कीट द्वारा हानि ही 2.0 से 4.2 प्रतिशत है इसके बाद चूहो द्वारा की 2.50 प्रतिशत, पक्षियों द्वारा 0.85 प्रतिशत और नमी के कारण 0.68 प्रतिशत है।

 

भंडारण हानियों के प्रकार

कीट विभिन्‍न प्रकार की हानियां करते हैं जैसे -

 

  • मात्रात्‍मक हानि

  • गुणवत्‍ता की हानि

  • बीज की अंकुरण छमता की हानि

  • भंडारण पात्र की हानि

 

मात्रात्‍मक हानि

  • कीटों के खाने से भंडारित अनाज के भार में हानि होती है।

  • चावल का घुन अपने विकास  के दौरान चावल के 20 मिग्रा में से 14 मिग्रा खा जाता है। लेकिन वाणिज्‍यिक रूप से तो पूरे स्टॉक की ही हानि होती है।

  • मादा घुन प्रतिवर्ष 3 पीढ़ियों के जरिए 1500000 बच्‍चे पैदा करने की जैविक क्षमता रखती है जो चावल के 1500000 दाने खा जाएंगे (लगभग 30 किलोग्राम चावल) एक सादासाइटोट्रोगा सेरेलिला 3 पीढ़ियों में 50 ग्राम चावल को पूर्णत: नष्‍ट कर सकती है।

 

गुणवत्‍ता की हानि

  • अनाज खा लेने से हानि

  • अनाज तत्‍व में रासायनिक परिवर्तन

  • मोल्‍ट त्‍वचा और शरीर के अंगों से अनाज का संदूषण

  • रोग के सूक्ष्‍म जीवाणुओं का प्रसार

 

बीज की अंकुरण क्षमता की हानि

  • धान में कीटों के कारण 3.6 से 41 प्रतिशत तक बीज की अंकुरण क्षमता की हानि पाई गई थी।

 

 

भंडारण ढांचे की हानि

  • लेसर ग्रेन बोरर जैसे कीटों में लकड़ी के भंडारण पात्र, पॉलीथीन लगी बोरियों आदि को नष्‍ट करने की क्षमता होती है।

  • खाद्यान्‍न हानि – प्रत्यक्ष या परोक्ष

  • प्रत्यक्ष हानि अनाज के बिखरने अथवा कीटों सहित जीवाणुओं द्वारा नष्‍ट होने से होती है।

  • परोक्ष हानि गुणवत्‍ता को उस सीमा तक गिराने से होती है लोग इसे खाने से मना कर दें।

 

 

कीट प्रकोप का दुष्प्रभावः

  • भार की हानि

  • अंकुरण क्षमता की हानि

  • वाणिज्‍यिक कीमत की हानि

  • उपभोक्‍ता द्वारा अस्वीति की हानि

  • पोषण तत्व की हानि

  • संदूषण

  • उष्‍मन

  • फफूँद वृद्धि होना

  • भंडारण में रखने की क्षमता की हानि

 

 

खाद्यान्‍नों का भंडारण ढेर के रूप में अथवा बोरियों में किया जा सकता है।

 

(क) बल्‍क (खुला) भंडारण:

      कृषि उत्‍पादों का कभी-कभी खुले रूप में फर्श आदि पर भंडारण किया जाता है। इसे निम्‍नलिखित कारणों से बोरियों के मुकाबले तरजीह दी जाती है।

बोरियो जैसे भंडारण पात्र खरीदने की कोई जरूरत नही होती। बोरी भंडारण की तुलना में कीटों की से हानि कम होती है और हो जाने पर दिखाई पड़ते ही प्रधूमन करके समाप्‍त किया जा सकता है। बोरियों से रिसाव से होने वाली बर्बादी से बच सकते है आसान निरीक्षण से श्रम और समय बचता है।

 

(ख) बोरी में भंडारण

कृषि उत्‍पादों का जूट की बोरियों में भरकर भंडारण किया जाता है।

 

 

लाभ

      प्रत्‍येक बोरी में एक निश्‍चित मात्रा होती है जिसे बिना परेशानी के खरीदा, बेचा अथवा भेजा जा सकता है। बोरियों का लदान अथवा उतरान सुगम होता है। संक्रमित बोरियों को हटाया जा सकता है और आसानी से इनका उपचार किया  जा सकता है। चूंकि बोरियां वायु सम्पर्क में से जुड़ी होती है इसलिए अनाज में वाष्पन की समस्‍या नहीं होती है।

 

 

किसानों द्वारा निम्‍न भंडारण संरचनाओं का उपयोग किया जाता है:

  • विभिन्‍न क्षमता (35,50,75 और 100 किलोग्राम) की अंदर प्लास्‍टिक लाइनिंग सहित अथवा इसके बिना बोरियां।

  • मिट्टी की कोठियाँ या कुठले जिनकी क्षमता 100-1000 किलोग्राम तक सकती है।

  • 5-100 किलोग्राम क्षमता के मिट्टी के पके हुए बरतन।

  • घर के कोने में फर्श पर ढेर लगाना (100-1500 क्‍विंटल)

  • बांस के ढांचे

  • लकड़ी के पात्र

  • भूमिगत ढांचे

    अवैज्ञानिक भंडारण, कीट, चूहे, सूक्ष्‍म जीवाणु आदि के कारण कुल उत्पादित खाद्यान्‍नों के लगभग 10 प्रतिशत की फसल कटाई उपरान्‍त हानि होती है। भारत में वार्षिक भंडारण हानि 7000 करोड़ रूपए कीमत के लगभग 14 मिलियन टन खाद्यान्‍न हैं जिसमें अकेले कीटों से हानि लगभग 1300 करोड़ रूपए है। भंडारण कीट द्वारा प्रमुख हानि न केवल उनके द्वारा अनाज को खाने से होती है बल्‍कि संदूषण से भी होती है। जिनसे कीटों लगभग 600 प्रजातियां जुड़ी हैं। भंडारित उत्‍पादों के कीटों की लगभग 100 प्रजातियां आर्थिक हानि पहुँचाती हैं। विश्‍व बैंक की रिपोर्ट (1999) के अनुसार भारत में फसलोत्तर हानि प्रत्‍येक वर्ष 12 से 16 मिलियन टन खाद्यान्‍न है जो भारत के एक तिहाई गरीबों का पेट भर सकती है। न फसलोत्तर हानियों में से भंडारण कीट द्वारा हानि ही 2.0 से 4.2 प्रतिशत है इसके बाद चूहो द्वारा की 2.50 प्रतिशत, पक्षियों द्वारा 0.85 प्रतिशत और नमी के कारण 0.68 प्रतिशत है।

    भंडारण हानियों के प्रकार

 

  • कीट विभिन्‍न प्रकार की हानियां करते हैं जैसे -

  • मात्रात्‍मक हानि

  • गुणवत्‍ता की हानि

  • बीज की अंकुरण छमता की हानि

  • भंडारण पात्र की हानि

 

 

  • मात्रात्‍मक हानि

  • कीटों के खाने से भंडारित अनाज के भार में हानि होती है।

  • चावल का घुन अपने विकास  के दौरान चावल के 20 मिग्रा में से 14 मिग्रा खा जाता है। लेकिन वाणिज्‍यिक रूप से तो पूरे स्टॉक की ही हानि होती है।

  • मादा घुन प्रतिवर्ष 3 पीढ़ियों के जरिए 1500000 बच्‍चे पैदा करने की जैविक क्षमता रखती है जो चावल के 1500000 दाने खा जाएंगे (लगभग 30 किलोग्राम चावल) एक सादासाइटोट्रोगा सेरेलिला 3 पीढ़ियों में 50 ग्राम चावल को पूर्णत: नष्‍ट कर सकती है।

 

  • गुणवत्‍ता की हानि

  • अनाज खा लेने से हानि

  • अनाज तत्‍व में रासायनिक परिवर्तन

  • मोल्‍ट त्‍वचा और शरीर के अंगों से अनाज का संदूषण

  • रोग के सूक्ष्‍म जीवाणुओं का प्रसार

 

 

  • बीज की अंकुरण क्षमता की हानि

  • धान में कीटों के कारण 3.6 से 41 प्रतिशत तक बीज की अंकुरण क्षमता की हानि पाई गई थी।

 

 

  • भंडारण ढांचे की हानि

  • लेसर ग्रेन बोरर जैसे कीटों में लकड़ी के भंडारण पात्र, पॉलीथीन लगी बोरियों आदि को नष्‍ट करने की क्षमता होती है।

 

 

  • खाद्यान्‍न हानि – प्रत्यक्ष या परोक्ष

  • प्रत्यक्ष हानि अनाज के बिखरने अथवा कीटों सहित जीवाणुओं द्वारा नष्‍ट होने से होती है।

  • परोक्ष हानि गुणवत्‍ता को उस सीमा तक गिराने से होती है लोग इसे खाने से मना कर दें।

 

 

  • कीट प्रकोप का दुष्प्रभावः

  • भार की हानि

  • अंकुरण क्षमता की हानि

  • वाणिज्‍यिक कीमत की हानि

  • उपभोक्‍ता द्वारा अस्वीति की हानि

  • पोषण तत्व की हानि

  • संदूषण

  • उष्‍मन

  • फफूँद वृद्धि होना

  • भंडारण में रखने की क्षमता की हानि

 

  • खाद्यान्‍नों का भंडारण ढेर के रूप में अथवा बोरियों में किया जा सकता है।

     

  • (क) बल्‍क (खुला) भंडारण:

          कृषि उत्‍पादों का कभी-कभी खुले रूप में फर्श आदि पर भंडारण किया जाता है। इसे निम्‍नलिखित कारणों से बोरियों के मुकाबले तरजीह दी जाती है।

    बोरियो जैसे भंडारण पात्र खरीदने की कोई जरूरत नही होती। बोरी भंडारण की तुलना में कीटों की से हानि कम होती है और हो जाने पर दिखाई पड़ते ही प्रधूमन करके समाप्‍त किया जा सकता है। बोरियों से रिसाव से होने वाली बर्बादी से बच सकते है आसान निरीक्षण से श्रम और समय बचता है।

     

  • (ख) बोरी में भंडारण

    कृषि उत्‍पादों का जूट की बोरियों में भरकर भंडारण किया जाता है।

     

  • लाभ

          प्रत्‍येक बोरी में एक निश्‍चित मात्रा होती है जिसे बिना परेशानी के खरीदा, बेचा अथवा भेजा जा सकता है। बोरियों का लदान अथवा उतरान सुगम होता है। संक्रमित बोरियों को हटाया जा सकता है और आसानी से इनका उपचार किया  जा सकता है। चूंकि बोरियां वायु सम्पर्क में से जुड़ी होती है इसलिए अनाज में वाष्पन की समस्‍या नहीं होती है।

     

  • किसानों द्वारा निम्‍न भंडारण संरचनाओं का उपयोग किया जाता है:

  • विभिन्‍न क्षमता (35,50,75 और 100 किलोग्राम) की अंदर प्लास्‍टिक लाइनिंग सहित अथवा इसके बिना बोरियां।

  • मिट्टी की कोठियाँ या कुठले जिनकी क्षमता 100-1000 किलोग्राम तक सकती है।

  • 5-100 किलोग्राम क्षमता के मिट्टी के पके हुए बरतन।

  • घर के कोने में फर्श पर ढेर लगाना (100-1500 क्‍विंटल)

  • बांस के ढांचे

  • लकड़ी के पात्र

  • भूमिगत ढांचे

पारम्परिक भंडारण संरचनाएँ:

क्रम सं.

संरचना

निर्माण

भंडारित वस्तु

क्षमता

 अभ्युक्ति

  1.  

बांस निर्मित संरचना

बाँस की पतली पट्टियों को सिलेण्डर के आकार में बुना जाता है जिनका प्रमुख सँकरा और नीचे का भाग चौड़ा होता है

धान, गेहूं तथा ज्वार

5 क्विंटल

जीवन काल 4-5 वर्ष। कीड़ों के कारण धान के मामले में 5% और ज्वार के मामले में 15% की भार में कमी

  1.  

मिट्टी तथा मृदा निर्मित संरचना

मिट्टी, गोबर और धान का पैरा 3:3:1 के अनुपात मे मिला कर पात्र का आकार देकर धूप मे सुखाने के बाद आग मे पकाया जाता है।

धान, गेहूं, ज्वार, तिलहन तथा दलहन

5-10 क्विंटल

जीवन काल 8-10 वर्ष। बारिश के मौसम में दरारें पड़ती हैं और नमी आती है जिसके परिणाम स्वरूप कीड़ों और फफूंद का प्रकोप होता है।

  1.  

काष्ठ निर्मित संरचना

स्थानीय लड़की को काला पोत कर ऊपरी भाग में 30x20 सेमी का इनलेट और नीचे  30x15 सेमी का आउटलेट लगाया जाता है।

धान

10 क्विंटल

15-20 वर्ष। वायुरोधी और नमीरोधी नहीं होती

  1.  

 ईंट निर्मित संरचना

मकान के एक भाग रूप में चौकर ढाँचा ईंटो को सीमेन्ट या चूने से जोड़ कर बनाया जाता है दीवार की मोटाई 40 से 50 सेमी ऊपरी भाग में 50x50 सेमी का इनलेट और नीचे 15x15 सेमी का आउटलेट रखते है।

धान, ज्वार तथा गेहूं

25-30 क्विंटल

25-30 वर्ष। प्रारम्भिक लागत अत्यधिक। कीट और नमीरोधी नहीं है।

  1.  

भूमिगत संरचना

100 से 400 सेमी गटरे 50 से 100 सेमी की ऊपरी और 250 -300 सेमी की निचली परिधि के गढडे खोद कर अनाज भरने या निकालने के लिए ऊपरी भाग में ढक्कन दिया जाता है। अनाज भरने के पहले गढडे के तल तथा चारों ओर की दीवारों को भूसे या पैरे से ढक दिया जाता है। अनाज भर कर मुख को पैरे पत्थर तथा अन्त मे मिट्टी से बन्द कर दिया जाता है।

कोई भी अनाज

100-200 क्विंटल

कीड़ों से सुरक्षित, परंतु बीजों की अंकुरण क्षमता के नुकसान और हैंडलिंग में कठिनाई के कारण प्रचलन से बाहर हो गये हैं।

  1.  

पौधो से प्राप्त सामग्री  
क. धान का पैरा

 

b. Stem of vitex and pigeon pea stalks

 

c. Bottle gourd shells

 

 

धान, अन्य अनाज तथा दलहन

धान तथा अन्य अनाज

दलहन तथा गार्ड बीज

 

 

30-100 क्विंटल

 

1-2 क्विंटल

 

 2-5 किग्रा0

 

कीट तथा चूहा रोधी नहीं  

 

 

अस्थायी

 

 बीजों की अल्प मात्रा .

  1.  

मेटल कोरुगेटेड जी आई शीट

Sheets of about 3 m high are held vertically along one edge and edges of the other sheets are overlapped and bolted to each other. Thus the circle with 2-4 m dia. is completed with many such sheets. They are covered on the top with the plain M.S. or G.I. sheets.

विभिन्न प्रकार का अनाज

आवश्यकता नुसार

अस्थायी

  1.  

हैसियन कपड़े से बनी बोरियां  

 

  1.  

जूट की बोरियां

 

 

 

ग्रामीण स्‍तरीय उन्‍नत भंडारण पात्र

 

1. बीटूमैन/कोलतार के ड्रम

  • धातु बिन का वैकल्‍पिक मॉडल, समान प्रकार के तकनीकी कार्य निष्‍पादन के साथ कम लागत।

  • ये बिन 520 मिमी व्‍यास और 900 मिमी उचॉंई के होते हैं। इनमें 1.5 क्‍विंटल गेहूँ और 1.2 क्‍विंटल चने का भंडारण किया जा सकता है।

 

2. हापुड़ बिन/कोठी

  • 2,5,7.2 के और 10 क्‍विंटल क्षमता के गोलाकार बिन ये बड़े किसानों की भी आवश्‍यकता पूरी कर सकते हैं।

 

3. उदयपुर बिन

  • ये उपयोग किए गए कोलतार के ड्रमों से बनाए जाते हैं।

  • इनमें 1.3 क्‍विंटल गेहूँ और मक्‍का रखी जा सकती है।

  • यदि इन बिनों में बीटूमैन को निकालने के लिए छोटा कट दिया जाता है तो इन बिनों को एयर टाइट ढक्‍कन युक्‍त बनाया जा सकता है।

  • ये बिन अल्‍पावधि के लिए खाद्यान्‍नों के भंडारण के लिए उपयुक्‍त हाते हैं और इन्‍हें छोटे किसानों द्वारा अपनाया जा सकता है।

 

4. पत्‍थर के बिन

  • पत्‍थर के बिन (चित्‍तौड़ बिन) स्‍थानीय रूप से उपलब्‍ध 40  मिलीमीटर मोटी पत्‍थर की पटियों से बनाए जाते हैं जिनका आकार वर्ग क्रास सेक्‍सन में 680 मिमी गुणा 1200 मिमी होता है।

  • इनलेट और आउॅटलेट एसबेस्‍टॉस के बने होते हैं। बिन की क्षमता 3.8 क्‍विंटल होती है।

 

5. बांस की कोठी

  • ये बिन बांस की दो दीवारों, जिनके बीच में पॉलीथिन की लाइनिंग होती है, के बने हाते हैं और इनकी भिन्‍न-भिन्‍न क्षमता होती है।

  • ये बिन अल्पावधि भंडारण के लिए उपयुक्‍त होते हैं और इन्‍हें लघु तथा सीमांत किसानों द्वारा अपनाया जा सकता है।

 

6. पक्‍की मिट्टी के बिन

  • 7 क्‍विंटल क्षमता (धान) के पकी मिट्टी के बिन 16 पके हुए घेरों को मिट्टी सीमेंट, से जोड़कर और एक के बाद एक इन्ही की परतें गाय के गोबर की सतह चढ़ाकर बनाए जाते हैं।

  • छल्‍लों के सिरे इस प्रकार बनाए जाते हैं कि वे एक दूसरे में फिट आएं।

  • इन छल्‍लों को पॉलीथिन की चादर से ढके और ईटों तथा सीमेंट रेत मोर्टर से प्लास्टर किए गए प्‍लेटफार्म पर रखा जाता है

  • अनाज निकालने के लिए आउटलेट बनाया जाता है।

  • इसके उपर हल्‍की स्‍टील का ढक्‍कन लगाया जाता है। सस्‍ता और अच्‍छा होने के कारण यह विशेष रूप से लघु और सीमांत किसानों के लिए उपयोगी होते हैं जो अपनी उपज का भंडारण लंबी अवधि के लिए नहीं करते हैं।

 

7. पीकेवी बिन

  • हरे बाँस को उपयुक्‍त आकार में चीरकर बनाया जाता है।

  • टनल, आउटलेट फ्लैप वाल्‍व और पूरा स्‍टैंड कार्यशाला में बनाया जा सकता है।

 

8. पूसा बिन

  • यह गाँवों में आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले साधारण मिट्टी के ढॉचे का संशोधित रूप है।

  • नमी और वायु रोधी बनाने के लिए मिट्टी के बिन के ऊपर, तली में तथा चारों ओर 700 गेज मोटी पॉलीथिन लगाई जाती है। इसको गूँथने की प्रक्रिया में पॉलीथिन फिल्‍म को यांत्रिक समर्थन और सुरक्षा मिलती है।

  • पकी हुई 45 सेमी. ऊची ईटों से बाहरी दीवार का निर्माण करने से ढॉचा मूषकरोधी बनता है।

  • बिन का निर्माण कच्ची या पक्‍की ईटों से कंक्रीट तल पर पक्‍की ईटों से किया जाता है ताकि चूहें छेद न कर सकें।

  • उचित सावधानियां बरतकर अनाज और बीज बिन में एक वर्ष से अधिक समय तक सुरक्षित रहते हैं।

 

9. पूसा क्‍यूबिकल

  • यह कमरे जैसा ढॉचा (3.95 गुणा 3.15 गुणा 2.60 मीटर) होता है जो 3.73 मीटर गुणा 2.93 मीटर गुणा 0.07 मीटर के प्‍लेटफॉर्म पर 24 टन से अधिक भंडारण क्षमता प्रदान करने के लिए पूसा बिन का संशोधित रूप है और कंक्रीट के तल पर कच्‍ची ईटों (22 सेंटीमीटर की पक्‍की ईटों से बनी बाह्य सतह को छोड़कर) से बना होता है।

  • इस प्‍लेटफॉर्म पर पॉलीथिन की चादर रखी जाती है तथा इसी आकार का कच्‍ची ईटों का एक और प्‍लेटफार्म बनाया जाता है।

  • 2.6 मीटर की ऊचाई तक 22 सेंटीमीटर मोटी आंतरिक दीवार का निर्माण किया जाता है। 3.95 मीटर की दीवार के आगे 1.89 मीटर गुणा 1.06 मीटर का लकड़ी के ढॉचे का दरवाजा लगाया जाता है।

  • छत का निर्माण 15 सेमी की दूरी पर लकड़ी की बीम रखकर कच्‍ची ईटों से ढक कर किया जा सकता है।

 

10.   पूसा कोठार

  •  भंडारण की पद्धति कमरे के छोटे कंपार्टमेंट (5.3 मीटर गुणा 2 मीटर गुणा 4 मीटर) चलाई जाती है जिसे कोठार कहते हैं।

  • इसकी छत का निर्माण लकड़ी के खंबों और मिट्टी की पट्टिकाओं से किया जाता है जिसमें आगे की दीवार के पास 0.5 मीटर गुणा 0.5 मीटर आकार के 3 छिद्र छोड़े जाते हैं।

  • 15 सेंटीमीटर व्‍यास और 30 सेंटीमीटर लंबाई की जीआई चद्दर के 2 निकास फर्श की दीवार पर आगे की ओर लगाए जाते हैं।

 

11.   धातु बिन

  • ये बिन स्‍टील, एल्‍यूमीनियम या आरसीसी के बने होते हैं और इनका उपयोग घर के बाहर अनाज भंडारण के लिए किया जाता है।

  • ये बिन आग और नमी रोधक होत हैं।

  • ये बिन लंबे समय तक चलते हैं तथा इनका उत्‍पादन वाणिज्‍यिक स्तर पर किया जाता है।

  • इनकी क्षमता 1 से 10 टन होती है। साइलोज बड़े बिन होते हैं जो स्‍टील/एल्‍यूमीनियम अथवा कंक्रीट के बने होते हैं।

  • आमतौर पर स्‍टील और एल्‍यूमीनियम के बिन गोलाकार होते हैं।

  • साइलो की क्षमता 500 से 40000 टन होती है। साइलो में अनाज भरने और निकालने की सुविधा होती है।

 

चट्टा लगाना

  • खाद्यान्‍नों का भंडारण और परिरक्षण तब तक गोदामों में वैज्ञानिक पद्दति से किया जाता है जब तक वे उपभोक्‍ता को जारी नहीं किए जाते हैं।

  • खाद्यान्‍नों से भरी बोरियों को गोदामों में बेतरतीब रुप से नहीं भरा जा सकता है क्‍योंकि इससे उचित भंडारण नहीं होगा।

  • उचित रुप से चट्टे लगाने से निरीक्षण के लिए गोदाम के सभी हिस्‍सों में स्‍टॉक तक पहुंच सुनिश्‍चित होती है और प्रभावी नियंत्रण कार्य में सहायता मिलती है। आमतौर पर चट्टे लगाने की तीन विधियां अपनाई जाती हैं: 1. साधारण, 2. क्रास और 3. ब्‍लाक विधि।

 

 

सभी खाद्यान्‍नों के संबंध में अच्‍छी भंडारण पद्धति के लिए आवश्‍यक कदम

  • भंडारित उत्‍पाद कीट का प्रबंधन या तो व्‍यवहार के रुप में (ट्रेप जैसे की प्रोब ट्रेप, लाइट ट्रेप, पिट फाल ट्रेप आदि) अथवा कई निवारक और उपचारात्‍मक उपायों      (रासायनिक और गैर-रासायनिक, दोनों विधियों) से किया जाता है।

  • खाद्यान्‍नों के सुरक्षित भंडारण के लिए कई कदम उठाए जाने होते हैं। इन कदमों में निम्‍न शामिल हैं:

 

1. भंडारण से पहले

  • वर्षा जल के लीकेज और पर्याप्‍त ड्रेनेज सुविधा की जांच करना।

  • स्थान और पर्यावरण की सफाई।

  • स्थान की क्षमता का आकलन।

  • कीटनाशक उपचार।

  • सुरक्षा और अग्‍नि शमन व्‍यवस्‍था और

  • उपलब्‍ध उपकरणों की मरम्‍मत।

 

2. अनाज प्राप्‍त करने के बाद

  • किस्‍म और गुणवत्‍ता के सही होने का निरीक्षण।

  • कीट प्रकोप, यदि कोई हो, के लिए सावधानीपूर्वक निरीक्षण और जब मौजूद हो तब कीट का प्रजाति और संक्रमण का स्तर देखना।

  • यह निरीक्षण करना क्या अनाज में अतिरिक्‍त नमी है, क्‍या पिछले भंडारण में यह गर्म हो गया था और इसमें कोई अप्रिय अथवा दुर्गंध तो नहीं है।

  • यदि अनाज नम अथवा क्षतिग्रस्‍त हो तो उसे भण्डारण स्थल से अलग किया जाए तथा प्राप्‍त स्‍टॉक के भार की जांच करना।

 

3.  भंडारण के दौरान

  • सफाई रखना

  • जहां आवश्‍यक हो वायु का आगमन सुनिश्‍चित करना

  • वर्षा के बाद लीकेज की जांच करना

  • पखवाड़े के अंतराल पर कीटों, चूहों और दीमक के लिए निरीक्षण

  • गुणवत्ता मे गिरावट, की अग्रिम निगरानी

  • निगरानी के आधार पर आवश्‍यक कीटनाशक उपचार

  • जहां कहीं आवश्‍यक हो, निपटान सुनिश्‍चित करना और

  • जहां कहीं पानी के लीकेज अथवा किसी अन्‍य कारण से क्षति हुई हो, वहां क्षतिग्रस्त अनाज को अलग करने और प्रोसेसिंग करने की व्‍यवस्‍था करना